विषम भूगोल और 71.05 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में अब जंगलों से भी लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे। इसका रास्ता तलाशने की कवायद शुरू हो गई है। वन महकमे ने चीड़ के पेड़ों से मिलने वाली वनोपज लीसा (रेजिन) से तारपीन का तेल निकालने का कार्य पीपीपी मोड में देने पर जोर दिया है। लॉकडाउन के कारण राज्य की अर्थव्यवस्था पर पड़े असर के मद्देनजर इससे उबरने और आजीविका के नए साधन तलाशने को रिपोर्ट देने के लिए सरकार की ओर से पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडेय की अध्यक्षता में गठित समिति को विभाग ने यह सुझाव दिया है।
प्रदेश के कुल वन क्षेत्र के करीब 15 फीसद हिस्से में चीड़ के पेड़ों का फैलाव है। इनसे मिलने वाला ज्वलनशील पदार्थ लीसा विभाग की आय का बड़ा जरिया है। वर्ष 2012-13 से 2017-18 तक के आंकड़े ही बताते हैं कि इस अवधि में राज्य में 9.04 लाख कुंतल लीसा का उत्पादन हुआ। यानी औसतन प्रतिवर्ष 1.50 लाख लीसा की पैदावार हो रही है। विभाग नीलामी के जरिये लीसा को तारपीन का तेल समेत अन्य उत्पाद बनाने के मद्देनजर रजिस्टर्ड फर्म व कंपनियों को बेचता है। इससे विभाग को हर साल करोड़ों की आय हो रही है। तारपीन का इस्तेमाल कॉस्मेटिक, पेंट, वार्निश के साथ रंग-रोगन में उपयोग में लाया जाता है।
मौजूदा परिस्थितियों में रोजगार के अवसर मुहैया कराने और आर्थिकी में भागीदारी के मद्देनजर सुझाव दिया है कि यदि राज्य में यूनिटें खोलकर यहां उत्पादित लीसे से तारपीन का तेल निकाला जाए तो इससे रोजगार भी मिलेगा और आय भी होगी। प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जय राज के अनुसार समिति के समक्ष सुझाव रखा गया कि यह कार्य सरकारी नियंत्रण में पीपीपी मोड में संचालित करने को दिया जा सकता है। यानी सरकार कच्चा माल मुहैया कराएगी और निजी पार्टनर इसका उत्पाद तैयार करेंगे।
फर्नीचर उद्योग को भी दे सकते हैं बढ़ावा
वन विभाग ने यह भी सुझाव दिया है कि वनों से हर साल गिरे, उखड़े पेड़ों से बड़े पैमाने पर लकड़ी प्राप्त होती है। यदि फर्नीचर बनाने की यूनिटें लगें तो विभाग उन्हें इसके लिए लकड़ी मुहैया कराएगा। इससे रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे और लोगों को उत्तम क्वालिटी का फर्नीचर भी उपलब्ध होगा। विभाग ने राज्य में वन विभाग के सभी वन विश्राम भवनों को ऑनलाइन करने पर भी जोर दिया है। वन विभाग के मुखिया के अनुसार अन्य बिंदुओं पर भी विचार किया जा रहा है और जल्द ही सुझाव सरकार को दिए जाएंगे।